Wednesday, 6 August 2014

हमारा वाल्ट डिजनी


पाठ्यपुस्तकों से बाहर भी किताबों की एक दुनिया होती है, 8-9 वर्ष की आयु में जब यह पता लगा तो पहला परिचय हुआ उस समय की हास्य पत्रिका ‘लोटपोट’ से....और उसमें भी सबसे मजेदार चरित्र चाचा चैाधरी और पिंकी से। प्राण कुमार शर्मा, जिन्हें हम प्राण के नाम से जानते थे, वास्तव भारत के वाल्ट डिजनी थे। जहाॅं पश्चिम के कार्टून चरित्र आकर्षक, बलिष्ठ और हथियारों से लैस होते थे वहीं सरलता से गुदगुदाने वाले वाले उनके साधारण कैरेक्टर सीधे-सादे और पास-पड़ोस से उठाए गए थे जो सहज हास्य उत्पन्न करते थे।


‘सरिता’ में आने वाला उनका एक और चरित्र था-श्रीमती जी, जिसमें शहरी पति-पत्नी के बीच की नोकझोंक और हास्य उत्पन्न करने वाली परिस्थितयां इतनी सहज होती थी, जैसी साधारणतः रोजमर्रा की जिंदगी में घटती रहती हैं।

किताब इतिहास की बड़ी बेवफा...रात भर रटी सवेरे सफा।.....शरारती किशोर बिल्लू जो ‘पराग’ में आता था मानों हम किशोरों के मन की उलझन ही बयान कर देता था। वाकई प्राण साहब बेजोड़ थे। आज यदि धड़ल्ले से उनके आर्टवर्क, कथ्य शिल्प और चरित्रों की नकल बाजार में हो रही है, ये भी उनकी सफलता का ही प्रमाण है।

अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब किसी की बेइज्जती करना हरगिज नहीं होता.....असीम त्रिवेदी के कार्टूनों पर उनकी यही प्रतिक्रिया थी। बीते कई सालों से वे कैंसर से पीड़ित थे। कल मंगलवार 5 अगस्त 2014 को उनका संसार से विदा हो जाना दुखद है....
हार्दिक श्रद्धांजलि।

© उमेश कुमार

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