Monday 20 February 2012

ये बूढ़े बरगद

आज बालकनी में बैठा हुआ फागुन की गुनगुनी धूप का आनंद उठा रहा था अचानक सड़क पर एक अस्पष्ट सी आवाज सुनाई दी। समझ में नहीं आया तो नीचे झाँकने पर मजबूर हुआ। एक 65-70 साल का कृशकाय वृद्व दिखाई दिया। सर पर साफा बाँधे और हाथ में एक छोटी-सी पेटी सँभाले वह जूतों पर पालिश और मरम्मत करने के लिए कॉलोनी में घूम रहा था। देखकर मन अंत्यंत द्रवित हो उठा।

जिस उम्र में उसे आराम से अपना जीवन बिताना चाहिए, उस उम्र में वह सड़कों पर दो पैसे कमाने की जुगत में घूम रहा था।

अपने आसपास हमे रोज ही ऐसे चरित्र दिखाई देते हैं....कभी रिक्शा वाले बनकर तो कभी चाय वाले बनकर। आखिर कौन-सी ऐसी मजबूरियाँ होती होगी, जिनके कारण हमारे बुजुर्ग इस उमर में भी काम करने के लिए मजबूर हो जाते होंगे। कारण बहुत से गिनाए जा सकते हैं किंतु कुछ भी हो....  समाज के लिए ये एक शर्मनाक बात है।

2 comments:

  1. आपकी संवेदनशीलता को नमन !

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  2. प्रभात की पहली किरण-सा आपका आगमन.....धन्यवाद!

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